Nainital News: अब छंटेगा सुनहरे धूमकेतु का धुंधलापन, 71 साल बाद पहुंचेगा धरती के करीब

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Golden Comet हर साल ड्रेकोनीड्स उल्कावृष्टि का नजारा दिखाने वाले इस धूमकेतु को अगले वर्ष नग्न आंखों से देखने का सुनहरा मौका मिलेगा। धूमकेतु 12पी/पोंस-ब्रूक्स की धुंधली तस्वीर अब साफ हो सकेंगी। यह धूमकेतु 71.3 साल बाद पृथ्वी की ओर आगे बढ़ रहा है। इस धूमकेतु की खोज जीन लुइस पोंस ने 12 जुलाई 1812 की थी। इसका करीब आना वैज्ञानिक अध्ययन के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

रमेश चंद्रा , नैनीताल: Golden Comet: धूमकेतु 12पी/पोंस-ब्रूक्स की धुंधली तस्वीर अब साफ हो सकेंगी। यह धूमकेतु 71.3 साल बाद पृथ्वी की ओर आगे बढ़ रहा है। हर साल ड्रेकोनीड्स उल्कावृष्टि का नजारा दिखाने वाले इस धूमकेतु को अगले वर्ष नग्न आंखों से देखने का सुनहरा मौका मिलेगा। इसका करीब आना वैज्ञानिक अध्ययन के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक डा शशिभूषण पांडेय के अनुसार धूमकेतु हमारे सौर मंडल के सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र रहे हैं। यह लंबी पूंछ के साथ हमारे करीब पहुचते हैं और उल्कावृष्टि की सौगात दे जाते हैं। इस धूमकेतु की खोज जीन लुइस पोंस ने 12 जुलाई 1812 की थी। इसके बाद विलियम्स रॉबर्ट ने 1883 में दूसरी बार इसे देखा।

खगोल प्रेमियों में जबरदस्त उत्साह

इस बार इसके करीब आने को लेकर वैज्ञानिकों के साथ खगोल प्रेमियों में जबरदस्त उत्साह है और वैज्ञानिकों की नजर इस पर जा टिकी हैं। फिलहाल इसकी चमक लगभग 4-4.5 पहुँच पहुच गई है। बृहस्पति ग्रह के नजदीक से गुजरने के इसको पहचान पाना आसान होगा। अगले वर्ष 2 जून को पृथ्वी के सबसे करीब पहुच जाएगा।

तब इसकी धरती से दूरी खगोलीय इकाई 1.6 ए.यू. रह जाएगी और चमक 6 परिमाण होगी। तब इसे नग्न आंखों से देखा जा सकेगा। ब्रिटिश एस्ट्रोनॉमिकल एसोसिएशन (बीएए) के क्षुद्रग्रह और दूरस्थ ग्रह अनुभाग ने 12पी/पोंस-ब्रूक्स इस पर नजर रखनी शुरू कर दी है।

खास बात यह है कि यह टॉप 10 धूमकेतुओं में शामिल है, जिन्होंने पिछली दो शताब्दियों के दौरान पांच परिमाण या उससे अधिक चमक बिखेरी है। अभी यह धुंधला नजर आ रहा है और वह सौरमंडल की भीतरी कक्षा में हमारे करीब आगे बढ़ रहा है।

कई रहस्य उजागर हो सकेंगे इस धूमकेतु के

डा शशिभूषण पांडेय के अनुसार भले ही धूमकेतु 12पी/पोंस-ब्रूक्स के पृथ्वी के नजदीक आने पर एक वर्ष का समय शेष हो, लेकिन 73 वर्ष के लंबे अंतराल बाद पहुचने पर इसके अध्ययन की राह आसान होने जा रही है। अत्यधुनिक तकनीक व सुविधाओं की उपलब्धता के चलते इसके कई रहस्य उजागर हो सकेंगे।