विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा में शुमार Kanwar Yatra, घुंघरू की छन-छन व भोले की जयकार से गुंजायमान हरिद्वार

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Kanwar Yatra 2023 धर्मनगरी हरिद्वार कांवड़ मेला और शिवभक्तों के रंग में रंग चुकी है। पैरों में घुंघरू बांधे भोले की जय-जयकार करते केसरिया धारण किए शिवभक्तों की टोली लोगों में आस्था और विश्वास का संचार कर रही है। तकरीबन 13 दिनों तक चलने वाली इस धार्मिक यात्रा में कांवड़ यात्रियों को कुछ परेशानी भी उठानी पड़ती है पर किसी को भी भूखे पेट नहीं रहना पड़ता है।

 Kanwar Yatra 2023: अतिथि देवो भव: को साकार कर रही कांवड़ मेला यात्रा। कांवड़ मेले के तीसरे दिन भी कांवड़ यात्रियों के आने और जाने का क्रम और संख्या बना रहा। पैरों में घुंघरू बांधे भोले की जय-जयकार करते केसरिया धारण किए शिवभक्तों की टोली लोगों में आस्था और विश्वास का संचार कर रही है।

मौसम कांवड़ यात्रियों के साथ लुका-छिपी का साथ दे रहा है। अब तक श्रावण मास में यात्रा के हर दिन वर्षा हुई और धूप भी खिली। यह स्थिति कांवड़ यात्रियों के लिए सुखप्रद है। धर्मनगरी हरिद्वार कांवड़ मेला और शिवभक्तों के रंग में रंग चुकी है।

मेले में सामाजिक सरोकार भी समाहित

विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा में शुमार कांवड़ मेला यात्रा आस्था और विश्वास का ऐसा पर्व है, जिसमें रंगने को हर कोई आतुर रहता है। यह भारतीय जीवन-दर्शन अतिथि देवो भव: को प्रत्यक्ष चरितार्थ-साकार करता है। यह धर्म-संस्कृति की ऐसी किताब है, जिसका हर अध्याय सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया: का पाठ पढ़ाता है।

धर्म-अध्यात्म के साथ-साथ इस मेले में सामाजिक सरोकार भी समाहित है। तकरीबन 13 दिनों तक चलने वाली इस धार्मिक यात्रा में कांवड़ यात्रियों को कुछ परेशानी भी उठानी पड़ती है पर, किसी को भी भूखे पेट नहीं रहना पड़ता है।

कांवड़ यात्रियों की सेवा को हरिद्वार से लेकर उनके गंतव्य तक के पूरे रास्ते पर विभिन्न सामाजिक, धार्मिक संगठनों की ओर से निश्शुल्क भंडारे, विश्राम और जलसेवा का आयोजन हर वर्ष किया जाता है। कांवड़ मेले में जगह-जगह निश्शुल्क खानपान, चिकित्सा शिविर सहित विश्रामालय लगाए जाते हैं। इनमें कांवड़ यात्रियों का आदर-सम्मान किया जाता है।

आश्रमों की ओर से भंडारों की व्यवस्था

कांवड़ मेले में आश्रमों की ओर से भंडारों की व्यवस्था तो होती ही है। इसके अलावा शहर के तमाम सामाजिक संगठनों की ओर से भी बड़े पैमाने पर यह व्यवस्था की जाती है। शहर से लेकर देहात तक भंडारे का आयोजन शुरू हो गया है, जो पूरे श्रावण मास तक चलेगा। इन भंडारों में कांवड़ यात्री तो भोजन करते ही हैं।

गरीब परिवार भी इस दौरान भंडारों में ही भोजन करते हैं, उन्हें भी रोजाना भोजन प्राप्त होता है। यही हमारी वैभवशाली संस्कृति की खासियत है, जो हमें अलग व विशिष्ट बनाती है। कांवड़ मेला यात्रा इसे साकार करता है।

मेले हमारी संस्कृति के संवाहक

पिछले 40 सालों से कांवड़ मेले को देखते आ रहे श्री गंगा सभा के पूर्व अध्यक्ष पुरुषोत्तम शर्मा, पूर्व महामंत्री राम कुमार मिश्रा बताते हैं कि धार्मिक यात्रा हो या फिर मेले हमारी संस्कृति के संवाहक हैं। इनमें हमारी संस्कृति के दर्शन होते हैं। उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे कांवड़ मेले का विस्तार हुआ है, वैसे-वैसे भंडारे लगाने का भी विस्तार हुआ है।

हरकी पैड़ी की प्रबंधकार्यकारिणी संस्था श्री गंगा सभा के अध्यक्ष नितिन गौतम और महामंत्री तन्मय वशिष्ठ बताते हैं कि कांवड़ मेला यात्रा आरंभ में कुछ हजार यात्रियों तक ही सीमित हुआ करती थी पर, उनके देखते ही देखते पिछले करीब 10 वर्षों में यात्रा के प्रति लोगों की आस्था और विश्वास में इस कदर बढ़ोतरी हुई कि अब यह संख्या कई करोड़ तक पहुंच गई।

कांवड़ मेला तो धीरे-धीरे कर कुंभ का आकार लेने लगा है। इस बार पांच करोड़ से अधिक कांवड़ यात्रियों के आने का अनुमान है।